पं0 श्रीराम शर्मा : व्यक्तित्त्व-कृतित्व

बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों का भारतीय समाज, साहित्य, मुख्यतः हिन्दी खड़ी बोली-साहित्य एवं राजनीति का ऐतिहासिक महत्त्व है। उत्तर भारत में आर्य-समाज के सुधारवादी आन्दोलन, स्वदेशी भाव-बोध के प्रसार तथा भारतीय संस्कृति की प्राधानिक परम्परा के प्रात्याख्यान में अपूर्व योगदान रहा है। राष्ट्र की बलिवेदी पर न्यौछावर होने की बलवती प्रेरणा के प्रचार-प्रसार में आर्य समाजी भजनीकों की यशः गाथा इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। ‘स्वाधीनता हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है और इसे हम लेकर रहेंगे’ का जयघोष भारतीय आकाश में प्रतिध्वनित हो रहा था। राष्ट्रीय भावना से अभिभूत माँ भारती के लौह-लाडलों पर राष्ट्रद्रोह के अभियोग, देश निकाले का दण्उद्व मृत्यु दण्ड का त्रासद भाव भी भारत माँ के सिंह सपूतों के आत्मबल विश्वास को हिलाने में सर्वथा असमर्थ रहा। ‘बाजुए कातिल’ का जोर देखने की बलवती इच्छा की लौ जगाए वीरों ने अपने खून से भारती-भाल पर तिलक लगाया। पारस्परिक सौहार्द्य में सन्देह का बीजारोपण कर अंग्रेज सरकार ने हिन्दू-मुसलमानों के नाम पर विभाजन की पृष्ठ भूमि तैयार की। सत्य का आग्रह और अहिंसा का अमोघ शस्त्र थाम राजनीति को धर्म के मर्यादित मार्ग पर बढ़ाने की दिशा में गाँधीवादी विचारों को अस्त्र रूप में प्रयुक्त कर शत्रुओं के हृदय परिवर्तन की आशा दुराशा में बदल गयी। गाँधीवादी आन्दोलन अरण्य रोदन सिद्ध हुए। ‘करो या मरो’ भारतीय जनमानस की अनिवार्यता बन गयी। सिद्धि लाभ की दिशा में हिंसा-अहिंसा का विवेक मूल, भारतीय युवा मानस ने सशस्त्र स्वाधीनता का मुखरा जाप प्रारम्भ कर दिया। स्वदेशी, स्वाधीनता एवं स्वराज्य के महायज्ञ में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले धरती पुत्रों में पण्डित श्रीराम शर्मा का नाम विशेष उल्लेखनीय है। स्वाधीनता संग्राम के घात-प्रतिघातों घटना प्रसंगों को अपनी रचनाओं में उकेर कर उन्होंने हिन्दी साहित्य में प्रथमतः सर्वथा नवीन पगडण्डियों का निर्माण किया है। भोगे हुए सत्य की मधु-तिक्त एवं त्रासद अनुभूतियों के संस्मरण, रेखा चित्र, पथ के साथियों के पावन चरित्र का सश्रद्ध प्रात्याख्यान उनकी रचनाओं में मूर्तिमन्त हो उठा है। नाम, अनाम, छदमनाम से सरकारी तन्त्र पर प्रखर प्रहार करते उनके आलेख सम्पादकीय हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि बन गये हैं।

मझौला कद, चौड़ा उन्नत ललाट, हिमालय सी सीधी उठी नासिका आबूनसी चश्में से झांकती तीखी मर्म भेदनी तेजोदीप्त आँखों में झलकता अपूर्व विश्वास, सर पर सफेद खादी टोपी, हाथ कते सूत का कुर्ता-धोती , एक कन्धे पर कालिका कराली रेमिंगटन बन्दूक दूसरे में सरस्वती सितार। गले में भुजगेश का रूप धरे कैमरा, एक हाथ में फाबड़ा दूसरे में लेखिनी। कलयुगी चतुर्भुज वेश, अद्भूत, विचित्र किन्तु सत्य। इस अपूर्व गणवेशधारी व्यक्तित्व की सांसारिक संज्ञा है-श्रीराम शर्मा। पं0 श्रीराम शर्मा की त्रिभंगी मुद्रा को छोड़ माँ सरस्वती के आराधक बरद पुत्र का पावन स्मरण मेरे इस लेख की ‘गजदन्ती’ परिक्रमा है।’ ब्रह्मानन्द सहोदर कवि-सखा-बन्धु पण्डित श्रीराम शर्मा की दृष्टि से जीवन का कोई भी अंग-अंश अनदेखा अछूता नहीं रहा। साहित्य, राजनीति धर्म-दर्शन, कृषि, ललित कलाएँ शिकार, यात्रा-साहित्य आदि सभी क्षेत्रों में पण्डित जी ने साधिकार सशक्त शब्दों में लिखा और लोगों को लिखने की प्रेरणा दी।

पं0 श्रीराम शर्मा ने अपने लेखन में साहित्य की विभिन्न शैलियों को अपनाया। गद्य साहित्य की विभिन्न विधाओं को माध्यम स्वरूप ग्रहण कर पण्डित जी ने हिन्दी साहित्य की अपूर्व सेवा की है। उनके साहित्य में जीवन के भोगे हुए सत्य की अभिव्यक्ति पाकर पाठक आश्चर्य चकित रह जाता है ।अपनी नियति का पथ अपने पैरों चलते हुए पण्डित जी ने अपने परिवेश को खुली आँखों से देखकर उसे मुखरित किया है। यही कारण है कि इनकी रचनाएँ सजीव एवं हृदय को छू लेती है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी पण्डित जी ने कृषि, जीव विज्ञान, प्राणि विज्ञान, धर्म-दर्शन, साहित्य-राजनीति अर्थ तन्त्र से लेकर महा ठगों की दुनियाँ को साधिकार अपने पाठकों के सामने रखा है। उनकी कथाएँ शिकार विषयक कहानियाँ लेख रेखाचित्र संस्मरण आदि उनकी प्रखर प्रतिभा से आलोकित, हो उठी है। हिन्दी में शिकार साहित्य के प्रवर्तक रूप में पण्डित श्रीराम शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। संस्मरण एवं रेखाचित्र के सन्दर्भ में भी कतिपय आलोचकों की धारणा है कि पण्डित श्रीराम शर्मा ही इन विधाओं के जनक हैं। हिन्दी खड़ी बोली गद्य के प्रचार प्रसार में पण्डित जी का योगदान ऐतिहासिक महत्व का कहा जाता है। उनके कृषि से सम्बद्ध लेख कृषि पण्डितों को भी आश्चर्य में डाल देते हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में पण्डित जी का योगदान अपूर्व है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित उनकी रचनाओं को-कथा रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी, यात्रा-साहिस्त्य, डायरी, निबंध, लेख, इन्टरव्यू आदि विधाओं को पाते हैं। पण्डित श्रीराम शर्मा की मौलिक रचनाओं में निम्नलिखित कृतियाँ विशेष उल्लेखनीय है।

1 शिकार (मई 1932)।2. बोलती प्रतिमा (सितम्बर 1937), साहित्य सदन, किरथरा मक्खनपुर-मैनपुरी। 3. प्राणों का सौदा (मार्च 1939) 4. रानी लक्ष्मीबाई (1939)। 5. हमारी गाये (1941)। 6. पपीता (1941)। 7. जंगल के जीव (1949) आदि पुस्तकें विशाल भारत बुक डिपों, हरिसन रोड, कलकत्ता से प्रकाशित हैं। 8. अश्रुपात (सन 1928) गंगा पुस्तक माला, लखनऊ। 9. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (अंग्रेजी) (1948) शिवलाल अग्रवाल हॉस्पीटल रोड, आगरा। 10. रूद्र प्रयाग का आदमखोर बघेरा (अनूदित)(1957) ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस, कलकत्ता। 11. देवालय का शेर तथा कुमायँू के अन्य आदमखोर (1957) ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस 12. संघर्ष और समीक्षा (1959) हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर, हीरा बाग गिरगाँव बम्बई। 13. भारत वन्य पशु। 14. पं0 नेहरू पर राधाकृष्णनन के विचार (अनुदित) (1960)। 15. भारत के जंगली जीव, अप्रैल (1961) प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, दिल्ली। 16. वे जीते कैसे हैं? (1965) हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर, बम्बई। 17. संस्मरण और आखेट (1980) साहित्य प्रकाशन, आगरा। 18. हमारे पक्षी, प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, 19. भारत के जंगली जीव, प्रकाशन विभाग भारत सरकार। 20. संस्मरण-सीकर, आर्य बुक डिपो, दिल्ली। 21. रक्तपात (अनूदित) (अप्राप्य)।

शर्माजी का अप्रकाशित साहित्य निम्नलिखित है।
1. ठगों की बोली रमसिया (अनुदित)। 2. शब्द चित्र। 3. नयना सितमगर। 4. हमारे पड़ौसी पक्षी। 5. तरस न खाइये (अनुदित)। 6. बनवासी। 7. सेवाग्राम डायरी। 8. जेल डायरी।

इन अप्रकाशित पुस्तकों में कुछ तो प्राप्य हैं तथा कुछ अप्राप्य। अप्रकाशित पुस्तकों में से कुछ तो नष्ट हो गयी या टुकड़े-टुकड़े में प्राप्य हैं, सन 1942 को क्रान्ति में जब उनके घर की तलाशी हुई तो सारे कागज पत्र अस्त-व्यस्त हो गये। कुछ रचनाएँ खो गयीं, कुछ पुलिस ने नष्ट कर दीं, तो कुछ प्रकाशकों के हाथ लग लुप्त हो गयीं।

शर्मा के रेखाचित्र एवं संस्मरण

हिन्दी में शर्माजी को रेखाचित्रों एवं संस्मरण के क्षेत्र में पदार्पण करने वाले प्रथम साहित्यकार के रूप में जाना जाता है। इस विधा पर आधारित उनकी रचनाए निम्नलिखित हैंः-

1. बोलती प्रतिमा। 2. वे जीते कैसे हैं। 3. संघर्ष और समीक्षा। 4. शिकार। 5. जंगल के जीव। 6. सस्मरण सीकर। 7. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित उनके रेखाचित्र एवं संस्मरण।

बोलती प्रतिमा
इसकी प्रस्तावना में उन्होंने स्वयं लिखा है-लेखक के पन्द्रह लेख, कहानियाँ और स्कैच-पाठकों के सामने ‘बोलती प्रतिमा’ के नाम से’। इस पुस्तक में ‘गीली लकड़ियाँ, ‘एमुन तैमुन तिरकिटता और ‘शीर्षक हीन कहानी’-ये तीन कहानियाँ संग्रहीत हैं। ‘बोलती प्रतिमा’, ‘वसीयत’ ‘हरनामदास’, तथा फिरोजाबाद की काल कोठरी’ नामक जो संस्मरण इसमें हैं वे ‘विशालभारत’ में तथा ‘चन्दा’ नामक रेखाचित्र ‘मधुकर’ पत्रिका में भी प्रकाशित हुआ था। ‘अपराधी-’, इकाई का सौदा’, ‘वरदान’ एवं ‘ठाकुर की आन’ स्वाभिमान’ बलिदान तथा बचन पालन से सम्बन्धित संस्मरण है। ‘पीताम्बर’ संस्मरण कुम्हार जाति के हकीम के प्रति शर्माजी की श्रद्धा व्यक्त करता है जो अगणित पशुओं को जीवनदान देकर अन्त में स्वयं उचित चिकित्सा के अभाव में काल का ग्रास बना। ‘पीताम्बर’ संस्मरण ‘विशाल भारत’ में भी प्रकाशित हुआ था। ‘रतना की अम्मा’ समाज के शोषित वर्ष की कथा है ।

वे जीते कैसे हैं
पं0 श्रीराम शर्मा द्वारा रचित इस पुस्तक में बीस रेखाचित्र तथा संस्मरण हैं। इनमें से नौ रेखाचित्र इनकी दूसरी पुस्तकों में से लिये गये हैं तथा ग्यारह नये हैं। ‘काला हिरन : दुु्रतगामों’, ‘क्याः अदभुत’, ‘जंगल के जीव’ पुस्तक में, ‘बोलती हुई प्रतिमा’, ‘पीताम्बर’, ‘हदन्नमम’ ‘चन्दा’, ‘बोलती प्रतिमा’ में तथा ‘नयना सितमगर’, ‘स्मृति’, ‘मौत के मुँह में’ ‘शिकार’ नामक पुस्तक में मिलते हैं। शेष नवीन रेखाचित्र तथा संस्मरण इस प्रकार हैः

  1. दीनबन्धु के अन्तिम दिन-यह रचना ‘‘विशाल-भारत’ में 1941 के जनवरी अंक में ‘दीनबन्धु के जीवन के अन्तिम तीन मास’ शीर्षक से प्राप्त होती हैं।
  2. तमाखू लाओ-संस्मरण मध्ययुगीन ठगों का जीवन्त आलेख है।
  3. सड़क का एक दृश्य-यह रेखाचित्र ‘विशाल भारत’ के अगस्त 1934 के अंक के पृष्ठ 213 पर भी प्राप्त होता है। इसमें ग्रीष्म ऋतु को एक दोपहरी का चित्रण है, जब कसाई को गाय-भैंसो के झुण्ड के साथ दुर्व्यवहार करते देख लेखक की करूणा छलकी पड़ती है।
  4. ‘स्वर्गीय आसामी बाबू’-‘विशाल भारत’ के सितम्बर 1957 अंक में प्रकाशित हुआ संस्मरणात्मक रेखाचित्र है जिसमें उनके उस क्रान्तिकारी मित्र का विवरण है जो कटियारी के राजा रूक्मांगदसिंह के पहलवान जोगेन्द्र सिंह के रूप में रहते थे। आसामी बाबू नेताजी सुभाष के निकट सहयोगी थे, जिन्होंने पुलिस को धोखा देने के लिए तेजाब से अपना चेहरा कुरूप कर लिया था।
  5. स्वर्गीय रफी अहमद किदवई-किदवई के उदार व्यक्तित्व का सजीव वर्णन करने वाला यह संस्मरण विशाल भारत’ फरवरी 1957 अंक में प्रकाशित हुआ।
  6. तीन परिचय– भी इस पुस्तक का महत्वपूर्ण संस्मरण है।
  7. ‘स्वर्गीय राजा बहादुर रूकमांगद सिंह-शीर्षक से ही या रेखाचित्र अप्रैल 1937 में ‘विशाल भारत’ में प्रथमतः प्रकाशित हुआ। सामन्तवाद एवं जमींदारी प्रथा के कट्टर विरोधी पं0 श्रीराम शर्मा का मस्तक जिनके सन्मुख श्रद्धा नत् रहा जिसके मूल में महाराज कटियारी का आदर्श व्यक्तित्व हो रहा है। शर्माजी ने अपने दिशाशूल आदि, संस्मरणों में महाराजा कटियारी का संसम्मान वर्णन किया है।
  8. स्वर्गीय कुंवर साहब ‘कलकत्ता समाचार’ के सम्पादक कुंवर गणेश सिंह के व्यक्तित्व को भास्वर करता यह संस्मरणात्म लेख विशाल भारत के अप्रैल १६३५ अंक में प्रकाशित हुआ ।
  9. लड़की के पिता – एक प्रभावोत्पादक रेखाचित्र है । इसमें स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी के अलौकिक व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं । डकैती केस के अभियुक्त ठाकुर रोशन सिंह की पुत्री के विवाह में बाधक पुलिस दरोगा की गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा प्रताड़ना एवं लड़की के विवाह का चित्रण है ।
  10. दो पड़ोसी – ‘विशाल भारत’ के अगस्त १६४० के अंक में पृष्ठ १२७ पर भी प्राप्य है ।  इसमें एक पेड़ और एक विशाल अट्टालिका के माध्यम से अमीरी और गरीबी के सुख सन्तोष एवं दुःख का प्रतीकात्मक शैली में वर्णन हुआ है ।
  11. वे जीते कैसे हैं – शर्माजी का एक सजीव एवं मार्मिक रेखाचित्र है जिसमें उन्होंने दो ऐसे वृद्ध महानुभावों के जीवन तथा दर्द का चित्रण किया है जिनके सामने से उनके जवान बेटे उठ गये किन्तु वे सांसारिक कर्तव्यों का पालन धीरतापूर्वक करते रहे । एक वृद्ध पं. बनारसीदास जी के पिता हैं और दूसरे शर्माजी के चाचा पं. लक्ष्मणदास शर्मा हैं । (डॉ. जीवाराम के पिता)

अपने इन संस्मरणों एवं रेखाचित्रों में पंडितजी ने आसपास के चरित्रों द्वारा ही हमारे लिये जो उदहारण एकचित्र कर दिये हैं उनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं । इस पुस्तक के सन्दर्भ में आचार्य विनय मोहन का अभिमत है – ‘यह हिन्दी के लेखक की अपने विषय की अनुपम कृति हैं । इसमें उसकी बीस रचनाएँ हैं, प्रत्येक का अपना शिल्प है- तर्जे बयां है ।  प्रत्येक में मानो उसने अपनी आत्मा का रस उड़ेला है । हिन्दी में रेखाचित्र, आत्मकथा, संस्मरण लिखने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, पर जो एकान्त तन्मयता के साथ ‘वस्तु’ में प्राण प्रतिष्ठा प्रस्थापित करने की क्षमता प्रस्तुत संग्रह की कृतियों में परिलक्षित होती है, वह अन्यत्र दुर्लभ है ।’

संघर्ष और समीक्षा

इस रचना में पण्डित श्रीराम शर्मा ने सन् १६४२ की क्रान्ति का सजीव चित्रण किया है । उनके अपने अनुभवों ने इन्हें जीवन्त बनाने में विशेष सहायता प्रदान की है और  इसी  कारण ये संस्मरण हृदयहारी एवं प्रभावोत्पादक बन पड़े हैं । इस पुस्तक में संकलित पंडित जी के संस्मरण समय-समय पर ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित होते रहे थे । जनवरी १६४७ के सम्पादकीय विचार में उन्होंने लिखा है- ‘मित्रों का आग्रह है की हम सन् १६४२ के आन्दोलन के सम्बन्ध में धारावाहिक रूप से ‘विशाल भारत’ में कुछ लिखें । सन् १६४२ के आन्दोलन से हमारा निकटतम सम्पर्क रहा है X X X यों कुछ लेख तो हम संस्मरण के रूप में अवश्य लिखेंगे ।’

इस प्रकार विशाल भारत में प्रकाशित संस्मरण निम्नलिखित हैं – दांवपेच, मुसीबत के साथी, कताई, ठुकाई-पिटाई और अपमान, आन्दोलन का पूर्व पृ., आन्दोलन-संचालन जन्म व्यय, गिरफ्तारी, रहस्योद्घाटन, रामकली, दो उदहारण, आन्दोलन के बाद, पिताजी की अस्थियों का विसर्जन, हत्या का षड्यन्त्र । आन्दोलन का पूर्व पृ. इस पुस्तक का प्रथम लेख है । ‘सूबेदार जुम्मन खांँ’ भी इस पुस्तक का मार्मिक रेखाचित्र है ।

शर्माजी के प्रकाशित संस्मरण हिन्दी-साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं । हिन्दी में संस्मरण एवं रेखाचित्रों के प्रारम्भिक काल में उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ उनकी प्रतिभा का परिचायक हैं ।

संस्मरण सीकर

विशाल भारत में प्रकाशित निम्नलिखित रचनाएँ ‘संस्मरण सीकर’ में संग्रहित हुई हैं । संग्रहित संस्मरण निम्नलिखित हैं :-

. ‘जीवन संघर्ष का प्रारम्भ इस लेख में जन्म तथा बाल्य कल से सम्बन्ध घटना प्रसंगों का मार्मिक चित्रण हुआ है ।

 

. ‘नवलगढ़ (राजस्थान) की नौकरी – सन् १६५८ फरवरी मास के ‘विशाल भारत’ के अंक में पृ. १४२ पर प्रकाशित इसमें मैट्रीक्यूलेशन करने के बाद कालेज में प्रवेश के लिए धन एकत्र करने के लिए नौकरी और त्याग पत्र का विवेचन हुआ है ।

 

. ‘हैडमास्टर शिप से स्तीफा – ‘विशाल-भारत’ नवम्बर १६५७ के अंक में भी प्रकाशित हुआ था । इस लेख में ‘प्रताप’ दैनिक मानहानि केस में बन्द होने के उपरांत टिहरी गढ़वाल में चार वर्ष प्रताप हाई स्कूल में हेड मास्टरी करने एवं डिप्टी कलेक्टर की पिटाई के बाद त्याग पत्र देने की घटना का चित्रण हुआ है ।

 

. ‘हिन्दू संसार मानहानि केस – ‘विशाल-भारत’ के दिसंबर १६५७ के अंक में भी प्राप्य है । टिहरी गढ़वाल की अंतः कलह एवं घिनौनी राजनीति का रहस्योद्घाटन इस लेख की प्राण-चेतना है ।

 

. ‘डाकू बीरे से भेंट – ‘विशाल-भारत’ – जनवरी १६५६ के पृ. २० पर प्रकाशित है । पांच वर्ष की अवधि में १५१ व्यक्तियों की हत्या करने वाले २०-२५ वर्ष के युवा डाकू के जघन्य आपराधिक जीवन पर आधारित संस्मरण है ।

 

. ‘तुलासिंह– अपने समय के कुख्यात चोर तुलासिंह जाट जिन्होंने अपने जीवन के ३७ वर्षों की अवधि जेल में काटी और जीवन के अंतिम दिनों में ह्रदय परिवर्तन के कारण साधु, वेश धारण कर स्वत, साधु हो गया ।

 

. ‘ठाकुर यदुनाथ सिंह’ – विशाल भारत अप्रैल सन् १६५६ के अंक में प्रकाशित पुलिस के अत्याचारों से पीड़ित होने पर विवश हो डाकू जीवन स्वीकार करने वाले ठाकुर यदुनाथ की सहृदयता ।

पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित शर्मा जी के अन्य संस्मरण एवं रेखाचित्र-1. स्वर्गीय सेठ जमनालाल बजाज-नामक संस्मरण विशाल भारत में जून 1942 के अंक में पृ0 476 पर प्रकाशित हुआ था। 2. पालीवाल जी-नामक संस्मरण ‘विशाल भारत’ के दिसम्बर 1934 के अंक तथा ‘हंस’ पत्रिका के रेखाचित्रांक-मार्च 1931, 39 42 के अंकों में प्रकाशित हुए हैं।

‘स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी-नामक उनका संस्मरण ‘विशाल-भारत’ में अप्रैल 1931 के अंक में पृ0 55 पर प्राप्य है। स्वर्गीय मोहन लाल की निष्काम सेवा,परोपकारिता की भावना इस संस्मरण में स्पष्ट परिलक्षित होती है।

शर्माजी की सामाजिक कहानियाँ
इसके अन्तर्गत ‘बोलती प्रतिमा’ पुस्तक में ‘संग्रहीत ‘ऐमुन तैमुन तिरकिटता’ तथा ‘एक शीर्षकहीन कहानी’, ‘विशाल-भारत’ में प्रकाशित संध्या और समाधि’, ‘चाँद में प्रकाशित ‘लाहौर की यात्रा’, ‘सरस्वती’ में प्रकाशित’ दो कैदी’, ‘दूर देस है है जाना’ ‘भ्रातृ युद्ध’, ‘अभाव की पूर्ति’, ‘कलाकार ’, ‘उत्सर्ग’, ‘भूखा रोजदार’, ‘हत्या’ आदि कहानियाँ आती है। इन कहानियों में पण्डित जी का झुकाव दलित एवं पीड़ित वर्ग की ओर अधिक था, उनकी लेखनी ने सर्वत्र पीड़ा को ही समेटा है। विभिन्न परिस्थितियों से जूझते ऐसे पात्र उन्होंने अपने आस-पास से ही एकत्रित कर लिये हैं। उनकी सामाजिक कहानियाँ पढ़कर पाठक यह सोचने पर विवश हो जाता है कि प्रत्येक जीवन जटिल समस्याओं से जूझती कहानी है। बस उसे देख सकने की दृष्टि एवं व्यक्त करने के लिए संवेदनशील, सहृदय लेखक की सशक्त लेखनी होनी चाहिये।

गीली लकड़ियाँ’ शर्मा जी की उत्कृष्ट ‘प्रतीकात्मक कथा’ है। यह पं0 श्रीराम शर्मा द्वारा रचित ‘बोलती प्रतिमा’ नामक पुस्तक के पृष्ठ 75 पर भी संग्रहीत हैं।

बाल कथाएँ
बाल-साहित्य का भी पर्याप्त सृजन पं0 श्रीराम शर्मा ने किया है। इनकी बाल कथाएँ बालबोध एवं किशोर बोध दो भागों मतें विभक्त की जा सकती है। ये कथाएँ समय समय पर ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित हुई तथा कुछ अप्रकाशित हैं। इन कहानियों को विषय की दृष्टि से निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है

काल्पनिक कथाएँ
इनका प्रकाशन विशाल-भारत के विविध अंकों में हुआ है जो निम्नलिखित है-

1. जाटों की दो कहानियाँ नई और पुरानी-जुलाई 1949, पृ0 56। 2. खाय क्यों ना लेत- अगस्त 1949 पृ0 146। 3. चूहा और मेढ़क (चित्र)-सितम्बर 1949, पृ0 229। 4. जाट विद्या आदि-अक्टूबर 1949, पृ0 272। 5. राजा के दो सींग-मार्च 1947 पृ0 211। 6. समझौता-अप्रैल 1957, पृ0 280 । 7. दोनों एक से-अप्रैल 1957, पृ0 282। 8. पूजा और दक्षिणा-जून 1957 पृ0 424। 9. खिचपिच, खिचपिच -जुलाई 1957 पृ0 66 10 संध्या-अगस्त 1957, पृ0 147। 11. भोगामी तक-सितम्बर 1957, पृ0 217। 12. चम्पो के चाचा-अक्टूबर 1947, पृ0 309। 13. चेला-अक्टूबर 1957 पृ0 310। 14. चतुराई-नवम्बर 1957, पृ0 413। 15 गीता बढ़ रही है-दिसम्बर 1957, पृ0 495। 16. कौन अधिक चालाक-फरवरी 1958, पृ0 179। 17. मुल्ला बनाम बनिया-मार्च 1958 पृ0 255। 18. भोगांव भूषण-मार्च 1958, पृ0 259। 19. मुहर्रिर खाने की मवेशी- अप्रैल 1958, पृ0 332। 20. भेंट-मई 1958, पृ0 407। 21. वाक् जाल-मई जाता है-अक्टूबर 1958, पृ0 291। 24. देवर्षि नारद क्यों हँसे -दिसम्बर 1958, पृ0 222। 25. प्रधानमंत्री का चुनाव-फरवरी 1958, पृ0 145। 26. अकबर बादशाह और भोगांव-मार्च 1959, पृ0 225। 27. जाट की चतुराई-अप्रैल 1959, पृ0 309। 28. भवितव्यता-दिसम्बर 1959, पृ0 407 । 29. उनके लिये मैं मर सकता हँू -मई 1959, पृ0 503। 30. लाख रूपये की बात-जून 1959 पृ0 475। 31 लड़ाई और उसके निवारण-सितम्बर 1959 पृ0 200। 32. कहनी और करनी-नवम्बर 1959 पृ0 338। 33. चौबेजी की ताजिएदारी-मई 1960 पृ0 406। 34. कौली की ससुराल यात्रा-जून 1960 पृ0 492। 35. अहंकार अक्टूबर 1960 पृ0 303। 36. सर पटटामल-अक्टूबर 1960 पृ0 331। 37. मोह-अप्रैल 1960, पृ0 327। 1960, पृ0 408। 40. भरतपाल अफीमची-दिसम्बर 1960, पृ0 489। 41. भोगानी मुंशी-अगस्त 1960, पृ0 142। 42. जाट की चतुराई-जुलाई 1960 पृ0 64। 43. चार मूर्ख पंडित-जनवरी 1961, पृ0 68। 44 तीन धूत-मार्च 1961 पृ0 222। 45. चौबेजी की चालाकी-अप्रैल 1 61 पृ0 304। 46. बहू चाहिये या अम्मा-मई 1961, पृ0 382। 47. अमीर खुसरों और पनिहारिन-जून 1960, पृ0 456। 48. मौलबी साहब का व्रत-सितम्बर 1961, पृ0 685। 49. अकबर और महाभारत-अक्टूबर 191, पृ0 789। 50. जीजा की हंसी नवम्बर 1961, पृ0 897। 51. ठाकुर सुहाती-नवम्बर 1961, पृ0 897। 52. बदटटू और जुगट्टू-दिसम्बर 1961, पृ0 956। 63 दृ अफीमची की गायों का रोग-दिसम्बर 1961, पु0 946। 54. तीतर की बोली का अर्थ-फरवरी-मार्च 1962, पृ0 154। 55. एक ही अपराध पर विभिन्न सजाएँ -अप्रैल 1962, पृ0 231। 56. दिनों का फेर-जून 1962, पृ0 307। 57. अफीमची भरतपाल का मछली का शिकार-जुलाई 1962 पृ0 466। 58. भरतपाल की ठनठनपाल-फरवरी 1962, पृ0 139। 60. अफीमची के साढ़ू की ससुराल यात्रा-अगस्त 1962, पृ0 541। 61. नंगा चौथ-सितम्बर 1962, पृ0 606। 62. हँू कौन को जीजारे-अक्टूबर 1962, पृ0 701। 63. अंधों की गणना-नवम्बर 1962, पृ0 768। 64. गीदड़ों की बोली-नवम्बर 1962, पृ0 769। 65. असली सुख-सच्चाई और परिश्रम- जनवरी 1963, पृ0 65। 66. सुखी कौन है-सितम्बर 1963पृ0 161। 67. अफीमची वैद्य ठनठनपाल-जनवरी 1964 पृ0 40। 68. तीन में न तेरह में न ढाई सेर सतुली में-मार्च 1964, पृ0 150। 69. जाटऔर मुल्ला-अप्रैल 1964, पृ0 201। 70. उल्लू और उल्लू का पट्ठा-जून 1964 पृ0 294।

इन काल्पनिक बाल-कथाओं के अतिरिक्त शर्माजी की आचार-विचार विषय पर भी कुछ कहानियाँ मिलती है, जैसे-

1. हजरत मुहम्मद साहब का शिष्टाचार-विशाल भारत के अगस्त 1959 के अंक में पृ0 137 पर प्राप्त होता है।
2. हृदय की भाषा-‘विशाल भारत के मई 1964 के अंक में पृ0 353 पर प्राप्य है।

समाज पर व्यंग करने वाली कथाएँ
पं0 श्रीराम शर्मा रूढ़िवादिता के कट्टर विरोधी थे। समाज की रूढ़ियों पर व्यंग करती हुई उनकी कुछ बाल-कथाएँ हैं।

1. खटका न हो-मई 1957, पृ0 353। 2. नेता-जून 1957 पृ0 472। 3. बड़ा आदमी कौन-सितम्बर 1960, पृ0 217। 4. जीवन से मोह-दिसम्बर 1960, पृ0 490। 5. कुलीन मिसरानी-नवम्बर 1958, पृ0 435। 6. तू चल मैं आता हँू-जुलाई 1961, पृ0 524। 7. नेतागीरी का पट्टा-फरवरी 1957, पृ0 136। 8. आधुनिक नेतागीरी-सितम्बर 1963, पृ0 191। 9. व्यंग बाण-नवम्बर 1963, पृ0 364। पंचतन्त्र हितोपदेश कथा सरित्सागर आदि की कथाएँ

शर्मा जी ने पंचतन्त्र हितोपदेश तथा कथासरित्सागर नामक संस्कृत ग्रन्थों की कथाओं के आधार पर भी कहानियों की रचना की थी जो कि अप्रकाशित ही हैं। ये कथाएँ निम्नलिखित हैंः

1. दधि पुच्छ, 2. श्रृंगाल का अंत, 3. कूर्पर तिलक, 4. दुर्दान्त, 5. दुर्दान्त का अन्त 6. बुद्धिबल, 7. नीला सियार, 8. उष्ट्र का देहदान, 9. गधा, 10. सर्वनाश, 11. सुदृढ़ भेद, 12. बहुला, 13. बन्दर और घड़ियाल 14. मार्जार का का न्याय, 15. अकर्ण हृदय गर्दभ, 16. नीच कुल की हथिनी।
ये कथाएँ सामान्य स्तर की ही हैं। किन्तु बाल-बोध की अन्य सभी कथाएँ अति उच्चकोटि की हैं। अपने रूचिर रूप में ये बालकों को ही नहीं बड़ों को भीसमुचित आनन्द प्रदान करती हैं। जीवन के यथार्थ का ही प्रतिरूप होने के कारण इनका साहित्य हृदय को प्रभावित करता है। इस गुण से अछूती बाल-कथाएँ भी नहीं रही हैं। कुछ सत्य कथाएँ भी उन्होंने रची हैं, जो ये हैंः-

सत्य कथाएँ (बाल सत्य कथाएँ)

इनका प्रकाशन विशाल भारत के विविध अंकों में हुआ है जो निम्नलिखित है-

1. जहुमानी पर लकिरा बदमास नाही है-जनवरी 1958, पृ0 88। 2. अस्तपाल के लिए दान-जवरी 1959 पृ0 67। 3. चार असल खानदानी-फरवरी 1960, पृ0 140। 4. मोह-अप्रैल 1960, पृ0 327। 5. मोगामी उपासक-फरवरी मार्च 1962, पृ0 153। 6. चिम्पा-मई 1963, पृ0 348। 7. जनाना टिकट-जून 1963, पृ0 424। 8. गाँव की मर्यादा-जुलाई 1963, पृ0 47। 9. उपाधि की व्याधि-जुलाई 1964, पृ0 41। 10. भक्त कुम्भनदास और अकबर बादशाह-अगस्त 1964, पृ0 91।

इन सत्य कथाओं के अतिरिक्त पं0 श्रीराम शर्मा द्वारा रचित अन्य सत्य कथाएँ भी हैं जो समय-समय पर ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित होती रही है-वे इस प्रकार-

1. दो दानी-फरवरी 1940, पृ0 160। 2. वे आठ विधवाएँ -मई 1940, पृ0 482। 3. उनकी गुजर बसर-जुलाई 1940, पृ0 55। 4. वेे कैसे जीते हैं-जून 1940, पृ0 475। 5. मोह। 6. वे आदमी थे-जनवरी 1947 पृ0 31। 7. दो सौदे-मई 1947, पृ0 334।

इन कथाओं में यथार्थ घटनाओं का करूण चित्रण है।

साहसिक अवथा शिकार कथाएँ
इसके अन्तर्गत ‘शिकार’, ‘प्राणों का सौदा’ व ‘नयना सितमगर’ पुस्तकों में संकलित कहानियाँ हैं जो उनके साहसिक साहित्य के अन्तर्गत आती हैं।

शर्माजी का साहसिक साहित्य
1. शिकार, 2. जंगल के जीव, 3. प्राणों का सौदा, 4. नयना सितमगर (अप्रकाशित)

शिकार
इस पुस्तक में तेरह कथाएँ संग्रहीत हैं, जो इस प्रकार हैंः-
1. स्मृति, 2. कुफ्र टूटा, 3. भिड़न्त, 4. मौत के मुँह में, 5. काने की खोज में, 6. काने का अन्त, 7. बंडा और वाद-विवाद, 8. खूनी घटवारा, 9. चोल झपट्टा, 10. खलीफा के हाप, 11. श्मशान के सींग, 12. पैने छुरे, 13. शिकार सप्ताह।

ये सभी कथाएँ उनके अपने शिकारी जीवन के संस्मरण हैं।

‘शिकार’ पुस्तक शर्माजी की बहबुमूल्य कृति है जिसमें संस्मरण की सत्यता, कहानी की रोचकता, प्रकृति चित्रण की अनोखी छटा एवं उच्च कोटि के साहित्यकार का पाण्डित्य एवं गाम्भीर्य परिलक्षित होता है।

जंगल के जीव
सफल शिकारी होने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति को अपने शिकारों की आदतों, गतिविधियों एवं शरीर-रचना आदि का सम्यक् ज्ञान हो। शर्माजी को प्रकृति प्रेमी होने के कारा ण्ही प्रारम्ीा में जंगली जीवों ने अपनी ओर आकर्षित किया। ‘जंगल के जीव’ पुस्तक की भूमिका (पृ0 12) में उन्होनें स्वयं इस बात का जिक्र किया हैं। घन्टों इन जीवों की गतिविधियों का दूरबीन अथवा पास से छिपकर अययन करके सूक्ष्म निरीक्षणों द्वारा उनकी प्रकृति का ज्ञान प्राप्त करके तथा गढ़वाल एवं देहरादून ऋषिकेश के जंगलों में भटक-भटक कर लेखक ने जो अनुभव अर्जित किया, उसी तपस्या के फलस्वरूप ‘जगल के जीव’ नामक सिद्धि उसे प्राप्त हुई। जंगली जीव-जन्तुओं के विषय में हमारा ज्ञानवर्धन करने में यह पुस्तक बड़ी सहायी है।

इस पुस्तक में 9 जंगली जीवों के जन्म से मृत्यु तक के जीवन का विस्तृत एवं सूक्ष्म चित्रण है। इनमें से अधिकांश रेखाचित्र विशाल-भारत में समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं। ‘क्या-अदभुत (विशाल-भारत के फरवरी अंक पृ0 260 पर), ‘बघेराखून का प्यासा ’ (मई 1937 पृ0 447), शेर-शक्ति पुंज (जुलाई 1940, पृ0 11 पर) -जंगली मुर्ग-दैल छबीला’ (सितम्बर 1940, पृ0 239 पर), घड़ियाल-खूनी’ (अक्टूबर 1940, पृ0 314) तथा हाथी समझदार (नवम्बर 1940, पृ0 436) पर प्रकाशित हुए थे। इन रेखाचित्रों की विशेषता यह है कि वे किसी जंगली जीव के वर्णन संघर्ष, हर्ष-विषाद, हंसी और रूदन, जीवन-मरण प्रेम एवं ईर्ष्या, वात्सल्य एवं श्रृंगार आदि भावना से परिपूरित किसी नायक-नायिका के चित्रण से पतीत होते हैं। जंगली मुर्ग-छैल छबीला, सियार सयाना, शेर-शक्ति पुंज आदि सभी रचनाओं में यह गुण स्पष्टत : दिखाई पड़ता है। ‘घड़ियाल खूनी’, ‘बघेरा खून का प्यासा’, ‘शेर-शक्ति पुंज’ आदि सभी रेखाचित्रों का चित्रण पात्र के जन्म से ही प्रारम्भ होता है। उनके चित्रण के साथ-साथ लेखक प्रकृति सम्बन्धी नियमों तथा अपने अनुमानों की भी पालिश करता चलता है जिससे उसकी कलाकृतियों से और अधिक अनुभव एवं ज्ञान की आभा फूटे। किस तरह जन्म लेकर सभी संवेदनाओं से पूर्ण संघर्षरत् ये जीव अपना जीवन यापन करते हैं और अन्त में उसी रचियता की गोद में चले जाते हैं। जिसने अपनी लीलाओं का कुछ समय के लिए उन्हें आधार बताया था।

प्राणों का सौदा
शर्माजी ने पुस्तक की भूमिका (पृ0 8) में लिखा है कि ‘शिकार’ आप बीती चटनाओं का चित्रण है, और ‘प्राणों का सौदा’ कलाविद और मशहूर शिकारियों पर बती चटनाओं अथवा दुर्घटनाओं का चित्रण है। इस पुस्तक में 13 रचनाएँ संग्रहीत हैं जो कि जिम कार्वेट, चेड, विक, लेफ्टिनेट केसरले आदि की पुस्तकों तथा ‘वाइड वर्ल्ड’ (अंग्रेजी पत्रिका) में प्रकाशित लेखों पर आधारित हैं।

1. रूद्र प्रयाग का आदमखोर, 2. प्रेमोपहार, 3. कड़कधाय करि धड़ाम, 4. दुघटना, 5. जंगल का डाकू, 6. काले कारनामे, 7. रोमांचकारी कुश्ती 8. जंगल की दुलहिन, 9. अपमान जनक मृत्यु 10. यमदूत से साक्षात् 11. बदला, 12. शैतानी समूह, 13. अटल नियम।
इनमें से, ‘बदला’ विशाल-भारत’ के फरवरी अंक ( पृ0 246), प्रेमोपहार मार्च 1932 (पृ0 372) काले कारनामें मई 1933 (पृ0 372) काले कारनामे ंमई 1933 (पृ0 599) तथा जंगल की दुलहिन’ विशाल-भारत’ ही के जून 1933 (पृ0 739) पर प्रकाशित हुए थे।
‘प्राणों का सौदा’ शीर्षक पुस्तक में शीर्षक को साथकता प्रदान करने वाली कथाएँ है जिनमें शिकारियों के प्राण संकट में पड़े फिर भी अदम्य साहस से उन्होंने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया है। लेखक के शब्दों में वह साहसिकता ही क्या जिसमें उत्तेजना, मौत के आलिंगन को सम्भावना और विषम कठिनाईयॉ न पड़े। इस कथन की पुष्टि इन कहानियों से होती है।

शर्माजी का कृषि साहित्य
बहुमुखी प्रतिभाके धनी पं0 श्रीराम शर्मा ने अन्य विषयों के अतिरिक्त कृषि विषयक रचनाएँ भी की है। इन रचनाओं की विशेषता है वे केवल सैद्धान्तिक न होकर व्यावहारिक है । उनके विचार से धरती माँ के समान ममतामयी है। उसे यदि तुम तनिक से भी परिश्रम या भोजन का दान देते हो तो वह वत्सला निष्काम भाव से दूना-चौगुना करके तुम्हें ही लौटा देती है। धरती के इस रूप गुण को परख कर पं0 श्रीराम शर्मा ने उसायनी में परीक्षण किया और उनका प्रयोग अक्षरशः सही उतरा। उनके लिये पं0 श्रीराम शुक्ल ने लिखा है-उनके हाथों की अद्भुत शक्ति का चत्मकार सर्वत्र परिलक्षित हुआ। रायफल उठाई तो विशालकाय और भयंकर जुंगली जीवों का संहार हुआ। लेखनी उठाई तो पाठक मंत्र मुग्ध हुए बिना न रहे और जब खुरपी तथा फाबड़ा उठाया तो धरती माता शस्य श्यामला रूप में परिवतित हो गयी।

स्वाभाविक ही है कि ऐसे व्यक्तिव के स्वामी शर्माजी के कृषि सम्बन्धी साहित्य में भी उनके अनुभवों का निचोड़ ही हमें प्राप्त होता है। पुस्तकाकार रूप में हमें कृषि सम्बन्धी दो पुस्तकें उपलब्ध होती है-‘पपीता’ तथा ‘हमारी गाये’। दोनों ही पुस्तकें सन 1941 में प्रकाशित हुई थी।
‘पपीता’ नामक पुस्तक में पपीते की खेती पर किये हुए उनके व्यक्तिगत प्रयोगों का सार सुरक्षित है। पपीते के प्रकार, जलवायु, बीज, बचाव की विधियाँ, बोने का समय, पौधे लगाने की विधि, खोदने का समय एवं विधि, खाद के प्रश्न सिंचाई सम्बन्धी आवश्यक जानकारी, गुड़ाइ नराई की आवश्यकता, पपीते के रोग, नर एवं मादा, बिना बीज के फल, फलों को तोड़ने का समय तथा विधि, बाजार की कठिनाईयाँ पपीते के लाभ आदि विषयों पर विचार तथा सुझाव दिये गये हैं। इसके अतिरिक्त सरल उपायों द्वारा इसकी खेती में व्यवधान स्वरूप आई समस्याओं का निराकरण भी करने का उन्होंने प्रयत्न किया है। जून 1932 के विशाल7भारत में यह लेख प्रकाशित हुआ था-बाद में ‘मधुकर’ के 16 नवम्बर 1940 के अंक में भी भी संक्षिप्त रूप में यह लेख छपा था।

हमारी गायें
नामक कृषि अथवा कृषिकों से सम्बन्धित पुस्तक में गायों की रक्षा एवं गोपालन पर बल दिया गया है। गायों की नस्लों के विवरण तथा रक्षा से सम्बन्धित यह प्रथम वैज्ञानिक आधार की पुस्तक है। गायो का भारतीय कृषक वर्ग से घनिष्ठ सम्बन्ध है अतः यह उनके लिये अति उपयोगी भी है। इस पुस्तक में उन्होंने जिन विषयों पर अपने ज्ञान युक्त विचार व्यक्त किये हैं, वे निम्नलिखित हैः-

  1. गाय बनाम भैंस (विशाल भारत मार्च 1941, पृ0 263)
  2. गाय की पहचान (विशाल भारत अप्रैल 1941, पृ0 269)
  3. अखिल भारतीय पशु-प्रदर्शनी (विशाल भारत मई 1941, पृ0 266)
  4. पशु बाल न खाने पाय (विशाल भारत जून 1941, पृ0 210)
  5. चारे में विटामिन ‘ए’ की कमी (विशाल भारत फरवरी 1941, पृ0 188)
  6. चारे में दुर्भिक्ष का एक उपाय (विशाल भारत सितम्बर 1940, पृ0 252)
  7. गाय अधिक दूध कैसे दे? (विशाल भारत सितम्बर 1941, पृ0 297)
  8. गाय के बच्चों के साथ व्यवहार
  9. गायों की विभिन्न नस्लें (विशाल भारत जुलाई, अगस्त, अक्टूबर, नवम्बर पृ0178,191, 346,441)
  10. गो-वंश की उन्नति

यह पुस्तक सचित्र है तथा इसका एक लेख कुंवर सुरेन्द्र सिंह ‘इन्द्र’ द्वारा रचित है-वह है, -दूध दुहना’ शर्माजी के ही शब्दों में ‘-इस पुस्तक में वर्णित भारतीय’ गायों की नस्ल सम्बन्धी सामग्री कृषि शोध’ की शाही कौंसिल ;ज्ीम प्उचमतपंस बवनदबपस वि ।हतपबनसजतनंस त्मेमतंबीद्ध की बुलेटिन नं0 27 और 46 के आधार पर लिखी।’

‘हमारी गाये’ पुस्तक में शर्मा जी ने इस बात पर बल दिया है कि प्रत्येक कृषक (यदि सम्भव हो तो प्रत्येक गृहस्थ को भी) को गाय अवश्य ही पालनी चाहिये जिससे दूध तथा दूध से बने अन्य पदार्थो के अतिरिक्त अच्छे बैल भी सुगमता से उपलब्ध हो सकें। इससे आर्थिक एवं शारीरिक दशा में सुधार आयेगा। गायों की नस्लों की उन्नति, चारे आदि का विशेष ध्यान रखने पर उन्होनें विशेष बल दिया है तथा उनके बच्चों के साथ सद्व्यवहार का भी मानवतापूर्ण सुझाव दिया है। दूध अधिक देने के योग्य गायें हो इसके लिये शर्मा जी के सुझाव बहुमूल्य है।

विशाल भारत में प्रकाशित कृषि सम्बन्धित लेख
इसके अन्तर्गत आये लेखों को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं-पं0 फल एवं सब्जी सम्बन्धित, 2. भूमि सम्बन्धी 3. अन्य लेख।
फल एवं सब्जी सम्बन्धित लेखों मटर, गोभी और करमकल्ला, परवल, टमाटर, गुणकारी आवंला, आलू की खेती, गन्ने की खेती हैं जो समय-समय पर ‘विशाल भारत’ एवं ‘मधुकर’ पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे।

इसमें इन सभी की खेती से सम्बन्धित विशेष बातों एवं गुणों का वर्णन मिलता है। इन लेखों को पढ़कर शर्मा जी के कृषि सम्बन्धी ज्ञान की प्रशंसा किए बिना नहीं रह जाता है।

पंडितजी के भूमि सम्बन्धी लेख
इस विषय के अन्तर्गत उनके ये लेख विशाल भारत में प्रकाशित है-

1. अबई तो बेटी बाप की-मई 1936। 2. यू0पी0 का नया आराजी कानून-जून 1940, पृष्ठ 3। 3. जमीन की कटनः एक महत्वपूर्ण प्रश्न-अगस्त 1940, पृष्ठ 110 4. पेड़ लगाइये, क्यों कहाँ और कैसे-मार्च 1948 पृष्ठ 170। 5. पेड़ लगाइये-विशाल भारत तथा मधुकर-जनवरी 1941, पृष्ठ 126। 16 अप्रैल 1941 पृष्ठ 29 ।6. नव जीवन फार्म-उसायनी-फरवरी 1953पृष्ठ 89। 7. कांग्रेस का भूमि सुधार प्रस्ताव-एक खतरे की घंटी-फरवरी 1959 पृष्ठ 91।

इन सभी लेखों में भूमि सम्बन्धी अनेक समस्याओं पर विचार किया गया है तथा बहुमूल्य सुझाव दिये गये हैं। मरूभूमि के बढ़ाव पर चिन्ता करते हुए उन्होंने अपने जो सुझाव दिये हैं वे अत्यन्त उपयोगी हैं। वृक्षों की उपयोगिता विषयक उनके लेख महत्वपूर्ण है। नवजीवन फार्म के लिए उनके किये प्रयत्नों एवं पयोगों का सजीव एवं सार्थक चित्रण नवजीवन फार्म उसायनी में है।

पं0 श्रीराम शर्मा कृषिशास्त्र की महाशास्त्र मानते थे। कृषि सम्बन्धी कानून एवं प्रस्ताव की ओर वे शीघ्र आकर्षित होते और उसकी अच्छाईयों की प्रशंसा तथा बुराईयों की घोर निन्दा करते थे। कांग्रेस की भूमि सुधार नीतियों की अव्यावहारिकता की उन्होनें खुली आलोचना की थी। किसान होने के नाते वे किसानों की समस्या को अधिक अच्छी तरह समझते थे। नेतागण तो केवल सैद्धान्तिक सुझाव ही देने की क्षमता रखते हैं। ऐसा उनका विचार था। शर्माजी के सुझाव कृषकों के हितों के अधिक निकट होने के कारण उचित तथा सूक्ष्म दूरदर्शितापूर्ण होते थे। इसमें कोई सन्देह नहीं है।

शर्मा जी के अन्य लेखः
विविध विषयों पर उनके गम्भीर लेख समय-समय पर ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित हुए-वे निम्नलिखित हैः-
1. बन्दरों की समस्या-मार्च 1937, पृष्ठ 303। 2. चारे के दुर्भिक्ष का एक उपाय-सितम्बर 1940 पृष्ठ 252। 3. गाय, गाँव और गाँधी-अक्टूबर 1947, पृष्ठ 258। 4. गाय, गाँव और गाँधी-जनवरी 1953, पृष्ठ 61। 5. हल्दी की काश्त-सितम्बर 1957, पृष्ठ 218। 6. बबूल बनाम गेहँू- जनवरी 1958 पृष्ठ 73। 7. बारह वर्षीय युद्ध-नवम्बर 1963, पृ0 360। 8. तनिक विचारिये तो-जून 1937, पृष्ठ 679। 9. क्या गोवध रोका जा सकता है?-जनवरी 1937 पृष्ठ 39। 10. गोवंश का हृा्रस क्यों?-जून 1940, पृष्ठ 390। 11. भैंसों की मुर्रा नस्ल-सितम्बर 1941, पृष्ठ 545। 12. चूहों की समस्या-मार्च 1939। 13. गाय का दूध ही क्यों पीना चाहिये-मार्च 1942, पृष्ठ 336। 14. गाय कैसे बचे? अप्रैल 1963, पृष्ठ 237। 15. खेती बारी और पशुपालन-जून 1964, पष्ठ 290।

पं0 श्रीराम शर्मा ने कृषि तथा कृषको की कतिपय समस्याओं पर प्रकाश डाला है जो देखने में छोटी होते हुए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं दूरदर्शितापूर्ण हैं। उन्होनें कृषि एवं कृषक सम्बन्धी जो भी साहित्य है उसकी विशेषता यही है कि उसे उन्होंने गाँव तथा ग्रामीण के स्तर तक पहुँच कर देख-समझ कर लिखा है। इसी कारण यह साहित्य सतही तथा केवल सैद्धान्तिक न होकर जीवन की विषम समस्याओं के अन्तरतम् तक पहुँच कर उनके व्यावहारिक हल ढूँढ निकालने में सफल होता है।

रेडियों पर प्रसारित भाषण
पं0 श्रीराम शर्मा के रेडियों से प्रसारित भाषण भी अपनी साहित्यकता में कम नहीं। समय-समय पर उन्होंने इस माध्यम के द्वारा अपना सन्देश जनता तक पहुँच कर उसे प्रभावित किया है। तथा उन्हें अत्यधिक लाभदायक सूचनाएँ भी दी हैं। उनके द्वारा प्रेषित मुख्य प्राप्य भाषण निम्नलिखित हैः-

  1. वन-जीवन का संरक्षण-विशाल भारत’ फरवरी 1958, पृ0 150, आकाश वाणी लखनऊ से साभार।
  2. हरियाणा जाति का महत्व– विशाल भारत सितम्बर 1963, पृ0 193, आकाशवाणी लखनऊ से।
  3. पशुओं के साथ अच्छा बर्ताव-विशाल भारत’ अक्टूबर 1963, पृ0 266, आकाशवाणी दिल्ली से।
  4. मृत पशुओं के उपयोग-आल इण्डिया रेडियों दिल्ली से प्रसारित।
  5. ब्रज का खान पान-विशाल भारत मार्च 1959 पृ0 219 आकाशवाणी दिल्ली से।
  6. ब्रज संस्कृति की विशेषताएँ– विशाल भारत अगस्त 1958 पृ0 97 22 जनवरी 1958 को आकाशवाणी दिल्ली से प्रसारित।
  7. ब्रज की भाषा-विशाल भारत जून 1958 पृ0 449, 18 अप्रैल 1958 का आकाशवाणी दिल्ली से प्रसारित।
  8. मध्यम वर्ग के कृषि फार्म का संगठन-12 फरवरी 1959 को आल इण्डिया रेडियों पर प्रसारित।
  9. ब्रज के जीवन में परिवर्तन-शिक्षा-दिल्ली आकाशवाणी से देहाती कार्यक्रम में सांय 6.15 पर 8 दिसम्बर 1958 को प्रसारित।
  10. कोयल– आल इण्डिया रेडियों लखनऊ से 2 मई 1950 को प्रसारित। विशाल भारत में जुलाई 1957 में प्रकाशित।
  11. किसान के मित्र और शत्रु-पशु और पक्षी– आकाशवाणी दिल्ली से प्रसारित तथा विशाल भारत में नवम्बर 1963 में प्रकाशित।
  12. फसलों का चूहों द्वारा नष्ट होना – आकाशवाणी दिल्ली से प्रसारित तथा विशाल भारत में नवेंबर 1963 में प्रकाशित

यात्रा-वर्णन में ‘आगरे से सेवाग्राम’, ‘सेवाग्राम से पुणे’, ‘बम्बई से ‘आगरा’, ‘आगरे से दिल्ली’, ‘आगरे से शिलांग ’ आदि रचनाएँ आती है।

शर्माजी का अनूदित साहित्य इस प्रकार हैः-
1. अश्रुपात-ख्वाजा हसन निजामी के बेगमात के आँसू का अनुवाद।
2. ठगों की बोली रमासिया-W. H. Sleeman द्वारा लिखित Ramaseena or A Vocabulary of the peculiar language used by ‘Thugs’  का हिन्दी अनुवाद।
3. रूद्र प्रयाग का आदमखोर बघेरा’ जिम कार्वेट के अंग्रेजी ग्रन्थ दि मैन इटिंग लैपर्ड ऑफ रूद्रप्रयाग का हिन्दी अनुवाद है।
4. ‘प्राणों का सौदा’ विभिन्न लेखकों द्वारा लिखित लेखों का अनुवाद है।
पं0 श्रीराम शर्मा ने कतिपय पुस्तकों का सम्पादन भी किया जिनमें प्रमुख हैं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन पर आधारित Netaji – His Life and Work अंग्रेजी पुस्तक ‘प्रताप’ के सम्पादन के अतिरिक्त उन्होंने ‘प्रभा’ नामक पत्रिका का सम्पादन भी देवदत्त शर्मा के नाम से किया था। विभिन्न साहित्य सेवा के अतिरिक्त वे मृत्युपर्यन्त विशाल-भारत’ का सम्पादन करते रहे।

शर्माजी ने साहित्य की सेवा के लिए विभिन्न विधाओं एवं विषयों को अपनाया। शिकार, कृषि, अनुवाद, पशु-पक्षी, प्रकृति, राजनीति, सम्पादन भाषण आदि के विषयों के अतिरिक्त कथा, रेखाचित्र, निबन्ध, इन्टरव्यू, जीवनी , संस्मरण, यात्रावर्णन आदि अनेक विधाओं का समन्वय उनके द्वारा रचित साहित्य में प्राप्य है।

पशु-पक्षी सम्बन्धी साहित्य उनके प्रकृति के पति अनुराग का प्रमाण है। शिकार का स्वाद भी उन्हें इसी कारण लगा क्योंकि पशु-पक्षियों ने उन्हें अपनी ओर अत्यधिक आकर्षित किया। अपनी उपयोगिता तथा सौन्दर्य के कारण विभिन्न पशु-पक्षियों ने उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया तथा वे आश्चर्य एवं कुतूहल से उनकी ओर खिंचे। वर्षो तक उन्होंने पशु-पक्षियों का सूक्ष्म निरीक्षण किया तथा अपने साहित्य में उन्हें महत्वपूर्ण स्थान दिया। शिकार सम्बन्धी साहित्य में तो इन जीव-जन्तुओं का वर्णन मिलता ही है किन्तु पशु-पक्षियों को ही विषय बना कर उन पर स्वतन्त्र साहित्य का भी सृजन शर्मा जी ने किया है। पशु-पक्षियों से सम्बन्धित उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैः-

1. जंगल के जीव। 2. हमारी गायें। 3. भारत के जंगली जीव। 4. भारत के जंगली जीव (बड़े रूप में)। 5. हमारे पड़ौसी पक्षी (अपकाशित)। 6. भारत वर्ष के सांप (अप्रकाशित)। 7. विशाल भारत में समय-समय पर पशु-पक्षियों से सम्बन्धित खेल।

पं0 श्री राम शर्मा के इस साहित्य में शायद ही कोई ऐसा भारतीय पशु-पक्षी दुटा होगा जिसने उचित स्थान न प्राप्त किया होगा। भारतीय पशु-पक्षियों के अतिरिक्त विदेशी पशु-पक्षियों का भी सूक्ष्म विवेचन तथा भारतीय पशु-पक्षियों से उनकी तुलना करके शर्माजी ने विषय को अत्यधिक रोचक बना दिया है। शर्माजी द्वारा रचित यह साहित्य उनके ज्ञान भण्डार, सूक्ष्म निरीक्षक रूप, संवेदनशील व्यक्तित्व तथा उनके महत्वपूर्ण साहित्यकार स्वरूप का दर्शन कराता है।

-डॉ0 (कु0)कमलेश नागर
अध्यक्षा-हिन्दी विभाग
दयालबाग (डिमड) विश्वविद्यालय आगरा